द गर्ल इन रूम 105
"सिकंदर भले ही दहशतगर्द निकला हो, लेकिन इससे फ़रज़ाना का दर्द कम तो नहीं हो जाता।' "जी।" 'तो सिकंदर का जारा की मौत से कोई सरोकार नहीं था? सफ़दर ने कहा ।
"नहीं। जैसा कि मैंने आपको बताया, इसमें फ़ैज़ का हाथ है।' मैंने कहा सफ़दर ने अपना सिर हिलाया। 'कैप्टन फ़ैज़र फ़ैज़ का बाप अब्दुल खान और मैं एक-दूसरे को पंद्रह साल से
जानते हैं। वे लोग हमारे क़रीबी दोस्त हैं।'
"इसीलिए तो वह जारा के इतने करीब आ पाया। लेकिन बाद में जब जारा को महसूस हुआ कि वो भूल कर
रही है तो फ़ैज़ इसे बर्दाश्त नहीं कर पाया।'
"लेकिन फ़ैज़ शादीशुदा है। उसके बच्चे हैं, जिन्हें मैं अपने नाती-पोतों की तरह प्यार करता हूँ। ' 'हम सबूतों की तलाश में उसके दिल्ली वाले घर में घुसे थे' सौरभ ने कहा 'वहां से हमें जारा और फैज़ की तस्वीरे एक हाउसबोट पर मिलीं। मैनेंसी किट्स भी एक ही दुकान से खरीदी गई थीं। '
'बहुत हुआ, सफ़दर ने दहाड़ते हुए कहा। वे उठ खड़े हुए और कमरे में चक्कर लगाने लगे।
'वो कातिल मैंने उसके साथ अपने बेटे की तरह बर्ताव किया। हम उसकी शादी में भी शरीक हुए थे। वो
मेरी नन्ही बिटिया को कैसे छू सकता है?"
हमें नहीं पता था कि इस पर क्या कहें। 'बो फ़ौजी होने के बावजूद ऐसा कर रहा है? फिर उसमें और दूसरे दहशतगर्दी में क्या फर्क रहा?"
'हम उसे सजा दिलवाएंगे, अंकल, ' सौरभ ने कहा।
'क्या इससे मेरी बेटी लीट आएगी?' आंसू की एक बूंद उनके गालों से लुढ़क गई। वे हमारे पास आकर बैठ
गए और अपने सिर को हाथों से ढंक लिया।
"नहीं अंकल, जारा तो अब लौटकर नहीं आएगी, लेकिन अगर हम उसके क़ातिल को सजा दिला इससे उसकी रूह को शांति जरूर मिलेगी। लेकिन अभी तो वो एक आला अफसर की तरह खुला घूम रहा है।"
पाए तो
'तुम लोग इसमें मेरी क्या मदद चाहते हो?" "अपने घर पर दुआ का एक कार्यक्रम रखिए और जारा के करीबी सभी लोगों को बुलाइए।'
'लेकिन दुआ की मजलिस ही क्यों?"
'अगर हमने राणा को अभी सबूत दे दिए, तो हमें डर है कि वो उन्हें बेच देगा। हम फ़ैज़ को सबके सामने
पकड़ना चाहते हैं, और उसके बाद ही हम पुलिस को खबर करेंगे।' सौरभ ने कहा।
"यह कैसे होगा?"
'दुआ वाले कार्यक्रम के बाद कुछ लोगों को डिनर के लिए रोक लीजिए। और कुछ ऐसा कीजिए कि फ़ैज़ और
हम एक ही कमरे में हों, मैंने कहा
"उसके बाद हम क्या करेंगे?'
'हम डिनर पर ही उसका सामना करेंगे, सौरभ ने कहा।
'और उसके बाद पुलिस आएगी और उसे जेल की चक्की पिसवाने अपने साथ ले जाएगी, मैंने कहा।
"डर रहे हो?" सौरभ ने अपने फोन से नज़रें उठाते हुए कहा।
हम दोनों अपने बेड पर बैठे थे। मैं अपने लैपटॉप पर एक प्रॉवेबिलिटी टेस्ट पेपर टाइप कर रहा था,
जिसका मुझे अगले हफ़्ते क्लास में इस्तेमाल करना था। मैंने लैपटॉप की स्क्रीन बंद कर दी।
'नहीं, डर तो नहीं, हां थोड़ी बेचैनी ज़रूर है।'
सफ़दर के घर पर होने वाले कार्यक्रम में अब केवल पांच दिन बचे थे। सफ़दर ने इसके लिए एक सादा सफ़ेद न्योता भेजा था। मैंने उसे बेडसाइड टेबल से उठा लिया-
"उसे हमारा साथ छोड़े सौ दिन होने जा रहे हैं।
लेकिन हम उसे हर दिन, हर घड़ी याद करते हैं।
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